नवरात्रि के पावन पर्व के साथ ही हर भक्त के मन में माँ दुर्गा के दर्शन और उनका स्मरण करने की लालसा उमड़ आती है। माँ दुर्गा शक्ति, सुदृढ़ता और करुणा की मूर्ति हैं, जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके दुखों का नाश करती हैं। दुर्गा चालीसा लिखा हुआ, उन्हीं के प्रति भक्ति का एक मार्मिक गीत है, जिसका पाठ कर हम माँ दुर्गा के चरणों में खुद को सौंप देते हैं।
इस छोटे से ब्लॉग पोस्ट में, हम आज दुर्गा चालीसा के सार को सरल शब्दों में समझेंगे और देखेंगे कि कैसे यह चालीसा हमें एक भक्तिपूर्ण सफर पर ले जाती है।
चालीसा की शुरुआत ही माँ दुर्गा के गुणों के गुणगान से होती है:
- नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी…
यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि माँ दुर्गा ही सुखों की दाता और दुखों की हरने वाली हैं। उनके नाम का स्मरण ही हमें शक्ति और आशा देता है।
फिर चालीसा हमें माँ दुर्गा के रूप-रंग का मनमोहक चित्रण करती है:
- शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटि विकराला…
यह वर्णन हमें माँ दुर्गा के सौम्य और उग्र दोनों रूपों की याद दिलाता है। वे मातृत्व की छवि समेटें हुए हैं, लेकिन साथ ही उनके क्रोध से बुराइयां कांपती हैं।
इस सफर में हम माँ दुर्गा के अनेक नामों और रूपों के दर्शन करते हैं:
- काली, भवानी, अम्बिका, शिवांगी, अन्नपूर्णा…
हर नाम उनके एक अलग गुण को दर्शाता है और हमें उनकी महानता का बोध कराता है।
चालीसा के अंतिम चरणों में हम भक्तभाव से माँ से अपनी मनोकामनाएं प्रकट करते हैं:
- रोग व्याधि दूर कर दे माई, जंजाल छत्र दुष्ट दूर कर दे…
हम उनकी शरण में आते हैं और उनसे अपने जीवन के संकटों को हरने और हमें सुख-शांति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
दुर्गा चालीसा लिखा हुआ
॥ श्री दुर्गा चालीसा ॥
<नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी>
<निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी>
<शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटी बिकराला>
<रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे>
<तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना>
<अन्नपूर्णा तुम जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला>
<प्रलयकाल सब नाशनहारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी>
<शिव योगी तुम्हरे गुन गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें>
<रूप सरस्वती का तुम धारा । दे सुबुधि ऋषि-मुनिन उबारा>
<धर्यो रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भईं फाड़ कर खम्बा>
<रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो>
<लक्ष्मी रूप धरो जग जानी । श्री नारायण अंग समानी>
<क्षीरसिन्धु में करत बिलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा>
<हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी>
<मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता>
<श्री भैरव तारा जग-तारिणि । छिन्न-भाल भव-दुःख निवारिणि>
<केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी>
<कर में खप्पर-खड्ग बिराजै । जाको देख काल डर भाजै>
<सोहै अस्त्र विविध त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला>
<नगरकोट में तुम्हीं बिराजत । तिहूँ लोक में डंका बाजत>
<शुम्भ निशुम्भ दैत्य तुम मारे । रक्तबीज-संखन संहारे>
<महिषासुर दानव अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी>
<रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तेहि संहारा>
<परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब तब>
<अमर पुरी अरू बासव लोका । तव महिमा सब रहें अशोका>
<ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी>
<प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुख-दारिद्र निकट नहिं आवै>
<ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ता कौ छुटि जाई>
<योगी सुर-मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी>
<शंकर आचारज तप कीनो । काम-क्रोध जीति तिन लीनो>
<निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । अति श्रद्धा नहिं सुमिरो तुमको>
<शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो॥
<शरणागत ह्वै कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
<भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
<मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरे दुख मेरो॥
<आशा तृष्णा निपट सतावैं । मोह-मदादिक सब बिनसावैं॥
<शत्रु नाश कीजै महरानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
<करहु कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला>
<जब लग जिओं दया फल पावौं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनावौं>
<दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परमपद पावै>
<देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी>
॥इति श्रीदुर्गा चालीसा समाप्त॥
- जय जय जय दुर्गे महीषासुर मर्दिनी…
यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि माँ दुर्गा दुष्टों का संहार करती हैं। उनका पराक्रम अजेय है और बुराई उनके सामने टिक नहीं सकती।
- सिंह चढ़ के दानव दलन करे, ज्वाला मुखी हंसी कर दिग खलें…
इस वर्णन में माँ दुर्गा का रौद्र रूप सामने आता है। वे सिंह पर सवार होकर आसुरी शक्तियों का नाश करती हैं। उनकी हंसी भी दिशाओं को हिला देती है, जो उनके प्रचंड तेज का प्रमाण है।
- दधि जंघा दानव खून पिये, खड्ग खण्डे खप्पर कपाल लिये…
यह अंश माँ दुर्गा के भयंकर युद्ध का चित्रण करता है। वे दानवों का खून पीती हैं, उनके हथियार टुकड़े-टुकड़े कर देती हैं और खप्परों में उनके कपाल रखती हैं। यह वर्णन उनकी क्रूरता को नहीं, बल्कि बुराई पर उनके विजय को दर्शाता है।
- दैत्यराज दलन करि के हरन, देवता सब सुख मानन करन…
इस पंक्ति में माँ दुर्गा की विजय का जश्न मनाया जाता है। दानवराजों का संहार कर उन्होंने देवताओं के दुख दूर कर दिए और उन्हें सुख प्रदान किया। यह उनकी करुणा और न्यायप्रियता का प्रमाण है।
दुर्गा चालीसा के पाठ से न केवल हमारे मन में भक्तिभाव जागृत होता है, बल्कि ये हमें आत्मबल और धैर्य भी प्रदान करती है। यह माँ दुर्गा के साथ एक ऐसा जुड़ाव है जो हमें जीवन की कठिन राहों पर चलने का हौसला देता है।
तो इस नवरात्रि के पावन अवसर पर, आइए हम सब मिलकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और माँ दुर्गा के आशीर्वाद को प्राप्त करें!
दुर्गा चालीसा का पराक्रम पक्ष हमें याद दिलाता है कि माँ दुर्गा केवल दयालु देवी नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली योद्धा भी हैं। वे बुराई के विरुद्ध सदा खड़ी रहती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। उनके इस रूप से हमें भी प्रेरणा मिलती है कि हम अपने जीवन में भी बुराई से लड़ें और सत्य का साथ दें।
तो, इस नवरात्रि के पावन अवसर पर, आइए हम न केवल माँ दुर्गा की भक्ति करें, बल्कि उनके साहस और पराक्रम से भी प्रेरणा लें। जय माँ दुर्गा!
कुछ अतिरिक्त बातें:
- रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी माँ दुर्गा के पराक्रम का विस्तार से वर्णन मिलता है। इन्हें पढ़कर आप उनके बारे में और अधिक जान सकते हैं।
- दुर्गा पूजा के दौरान अक्सर युद्ध लीला का आयोजन किया जाता है, जो माँ दुर्गा के पराक्रम का प्रतीकात्मक प्रदर्शन होता है।
- अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते समय माँ दुर्गा के पराक्रम को याद करें और उनसे शक्ति प्राप्त करें।
- आप चाहें तो चालीसा के प्रत्येक चरण का अर्थ समझते हुए भी उसे पढ़ें। इससे आपका भक्तिभाव और गहरा होगा।
- दुर्गा चालीसा का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान इसका महत्व और बढ़ जाता है।
- अगर आप पहली बार चालीसा पढ़ रहे हैं, तो किसी बड़े से इसे सुनकर उसकी विधि सीख लें।
- सबसे महत्वपूर्ण बात, दुर्गा चालीसा का पाठ करते हुए अपने मन को एकाग्र रखें और माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा रखें।
मुझे उम्मीद है कि यह ब्लॉग पोस्ट आप सभी को उपयोगी लगा होगा। आपका दिन शुभ हो!
जय माँ दुर्गा!
सवाल: क्या दुर्गा चालीसा का पाठ सिर्फ नवरात्रि के दौरान ही करना चाहिए?
जवाब: नहीं, दुर्गा चालीसा का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है। हालांकि, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान इसका महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि यह समय माँ दुर्गा की विशेष आराधना का होता है।
सवाल: क्या दुर्गा चालीसा का अर्थ समझते हुए पढ़ना जरूरी है?
जवाब: अर्थ समझते हुए पढ़ने से निश्चित रूप से आपके भक्तिभाव में गहराई आएगी, लेकिन यह जरूरी नहीं है। अगर आप अभी सीख रहे हैं, तो बस श्रद्धा और एकाग्रता के साथ इसका पाठ करें। धीरे-धीरे आप अर्थ भी समझने लगेंगे।
सवाल: दुर्गा चालीसा में माँ दुर्गा के इतने सारे नाम क्यों बताए गए हैं?
जवाब: हर नाम माँ दुर्गा के एक अलग गुण या रूप को दर्शाता है। उनका नाम जपने से हमें उनकी विविध शक्तियों का बोध होता है और हम उनसे हर तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।
सवाल: क्या दुर्गा चालीसा केवल एक भक्ति गीत है, या इसमें कोई और संदेश भी छिपा है?
जवाब: दुर्गा चालीसा सिर्फ भक्ति ही नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। यह हमें बुराई के खिलाफ लड़ने, सत्य का साथ देने और कभी हार न मानने की प्रेरणा देती है। माँ दुर्गा का साहस और दृढ़ता हमारे लिए आदर्श हैं।
सवाल: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से हमें क्या लाभ मिलते हैं?
जवाब: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से हमें आध्यात्मिक शांति, मन की एकाग्रता, भय दूर करने की शक्ति और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने का हौसला मिलता है। माँ दुर्गा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनका मार्गदर्शन करती हैं।
Wow, fantastic blog format! How long have you been running a blog for?
you make blogging glance easy. The overall look of your site is
excellent, let alone the content material!