श्री ब्रह्म संहिता | Brahma Samhita in Hindi

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ब्रह्म संहिता: ब्रह्माण्ड के रहस्यों का भंडार

हिन्दू धर्म के महान ग्रंथों में से एक, ब्रह्म संहिता, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, संरचना और रहस्यों के बारे में गहन ज्ञान का भंडार है। यह प्राचीन संस्कृत पाठ भगवान कृष्ण और उनके परम भक्त ब्रह्मा के बीच हुए वार्तालाप का वर्णन करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस पौराणिक ग्रंथ के प्रमुख बिंदुओं को सरल हिंदी में समझने का प्रयास करेंगे।

Brahma Samhita in Hindi

ब्रह्म संहिता की प्रमुख विशेषताएं:

  • ब्रह्माण्ड विज्ञान: ब्रह्म संहिता ब्रह्माण्ड की संरचना का वर्णन करता है, जिसमें विभिन्न लोकों, ग्रहों और नक्षत्रों का विस्तृत विवरण शामिल है। यह ब्रह्माण्ड के विस्तार और संकुचन के चक्रों की भी व्याख्या करता है।
  • सृष्टि का रहस्य: इस ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है, जिसमें परब्रह्मन (सर्वोच्च सत्ता) से ब्रह्मा की उत्पत्ति और उसके द्वारा सृष्टि के निर्माण की कथा शामिल है।
  • विष्णु की महिमा: ब्रह्म संहिता भगवान विष्णु को सर्वोच्च सत्ता के रूप में वर्णित करता है। यह उनकी दिव्य रूपों, गुणों और लीलाओं का वर्णन करता है।
  • भक्ति का महत्व: ग्रंथ के अनुसार, भक्ति ही ईश्वर को प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग है। इसमें विभिन्न भक्ति मार्गों का वर्णन किया गया है।

श्री ब्रह्म संहिता | Brahma Samhita

🦚ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः। अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम्॥(1)

🦚चिन्तामणिप्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम्।

लक्ष्मी सहस्रशतसम्भ्रमसेवयमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(2)

🦚वेणुं क्वणन्तमरविन्ददलायताक्षं बर्हावतं समसिताम्बुदसुन्दराङ्गम्।
कन्दर्पकोटिकमनीयविशेषशोभं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(3)

🦚आलोलचन्द्रकलसद्ववनमाल्यवंशी रत्नागदं प्रणयकेलिकलाविलासम्।
श्यामं त्रिभंगललितं नियतप्रकाशं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(4)

🦚अङ्गानि यस्य सकलेन्द्रियवृत्तिमन्ति पश्यन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति।
आनन्दचिन्मयसदुज्ज्वलविग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(5)

🦚अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूपम्‌ आद्यं पुराणपुरुषं नवयौवनं च।
वेदेषु दुर्लभमदुर्लभमात्मभक्तौ गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(6)

🦚पन्थास्तु कोटिशतवत्सरसम्प्रगम्यो वायोरथापि मनसो मुनिङ्गवानाम्।
सोऽप्यस्ति यत्प्रपदसीम्न्यविचिन्त्यतत्त्वे गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(7)

🦚एकोऽप्यसौ रचयितुं जगदण्डकोटिं- यच्छक्तिरस्ति जगदण्डचया यदन्तः।
अण्डान्तरस्थपरमाणुचयान्तरस्थं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(8)

🦚यभ्दावभावितधियो मनुजास्तथैव सम्प्राप्य रूपमहिमासनयानभूषाः।
सूक्तैर्यमेव निगमप्रथितैः स्तुवन्ति गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(9)

🦚आनन्दचिन्मयरसप्रतिभाविताभिस्‌ ताभिर्य एव निजरूपतया कलाभिः।
गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(10)

🦚प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।
यं श्यामसुन्दरमचिन्त्यगुणस्वरूपं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(11)

🦚रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन्‌ नानावतारमकरोद्‌ भुवनेषु किन्तु।
कृष्णः स्वयं समभवत्परमः पुमान्‌ यो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(12)

🦚यस्य प्रभा प्रभवतो जगदण्डकोटि- कोटिष्वशेषवसुधादि विभूतिभिन्नम्।
तद्‌ ब्रह्म निष्कलमनंतमशेषभूतं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(13)

🦚माया हि यस्य जगदण्डशतानि सूते त्रैगुण्यतद्विषयवेदवितायमाना।
सत्त्वावलम्बिपरसत्त्वं विशुद्धसत्त्वं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(14)

🦚आनन्दचिन्मयरसात्मतया मनःसु यः प्राणिनां प्रतिफलन्‌ स्मरतामुपेत्य।
लीलायितेन भुवनानि जयत्यजस्रं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(15)

🦚गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु।
ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(16)

🦚सृष्टिस्थितिप्रलयसाधनशक्तिरेका छायेव यस्य भुवनानि विभर्ति दूर्गा।
इच्छानुरूपमपि यस्य च चेष्टते सा गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(17)

🦚क्षीरं यथा दधि विकारविशेषयोगात्‌ सञ्जायते न हि ततः पृथगस्ति हेतोः।
यः शम्भुतामपि तथा समुपैति कार्याद्‌ गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(18)

🦚दीपार्चिरेव हि दशान्तरमभ्युपेत्य दीपायते विवृतहेतुसमानधर्मा।
यस्तादृगेव हि च विष्णुतया विभाति गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(19)

🦚यः कारणार्णवजले भजति स्म योग- निद्रामनन्तजगदण्डसरोमकूपः।
आधारशक्तिमवलम्ब्य परां स्वमूर्ति गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(20)

🦚यस्यैकनिश्वसितकालमथावलम्ब्य जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथाः।
विष्णुर्महान्‌ स इह यस्य कलाविशेषो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(21)

🦚भास्वान्‌ यथाश्मशकलेषु निजेषु तेजः स्वीयं कियत्प्रकटयत्यपि तद्वदत्र।
ब्रह्मा य एष जगदण्डविधानकर्ता गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(22)

🦚यत्पादपल्लवयुगं विनिधाय कुम्भ द्वन्द्वे प्रणामसमये स गणाधिराजः।
विघ्नान्‌ विहन्तुमलमस्य जगत्रयस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(23)

🦚अग्निर्मही गगनमम्बु मरुद्दिश श्च कालस्तथात्ममनसीति जगत्त्रयाणि।
यस्माद्‌ भवन्ति विभवन्ति विशन्ति यं च गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(24)

🦚यच्चक्षुरेष सविता सकलग्रहाणां राजा समस्तसुरमुर्तिरशेषतेजाः।
यस्याज्ञया भ्रमति सम्भृतकालचक्रो गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(25)

🦚धर्मोऽथ पापनिचयः श्रुतयस्तपांसि ब्रह्मादिकीटपतगावधयश्च जीवाः।
यद्दत्तमात्रविभवप्रकटप्रभावा गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(26)

🦚यस्त्विन्द्रगोपमथवेन्द्रमहो स्वकर्म- बन्धानुरूपफलभाजनमातनोती।
कर्माणि निर्दहति किन्तु च भक्तिभाजां गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(27)

🦚यं क्रोधकामसहजप्रणयादिभीति वात्सल्यमोहगुरुगौरवसेवयभावैः।
सञ्चिन्त्य तस्य सदृशीं तनुमापुरेते गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥(28)

🦚श्रियः कान्ताः कान्तः परमापुरुषः कल्पतरवो द्रुमा भूमिश्चिन्तामणिगणमयी तोयममृतम्।
कथा गानं नाटयं गमनमपि वंशी प्रियसखी चिदानन्दं ज्योतिः परमपि तदास्वाद्यमपि च॥(29)


🦚स यत्र क्षीराब्धिः स्रवति सुरभीभ्यश्च सुमहान्‌ निमेषार्धाख्यो वाव्रजति न हि यत्रापि समयः।
भजे श्वेतद्वीपं तमहमिह गोलोकमिति यं विदन्तस्ते सन्तः क्षितिविरलचाराः कतिपये॥(30)

ब्रह्म संहिता का महत्व:

ब्रह्म संहिता का हिन्दू धर्म और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल ब्रह्माण्ड विज्ञान और दर्शनशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि भक्ति और आध्यात्मिक साधना के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस ग्रंथ का अध्ययन करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान प्राप्त करने और जीवन का सही उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है।

मुझे आशा है कि यह ब्लॉग पोस्ट आपको ब्रह्म संहिता के बारे में कुछ रोचक जानकारी प्रदान करने में सफल रहा। यदि आपके कोई प्रश्न हैं या आप इस विषय पर चर्चा करना चाहते हैं, तो कृपया नीचे टिप्पणी करें।

श्री कृष्ण आरती
कृष्ण आरती

FAQs

ब्रह्म संहिता कब और किसने लिखी थी?

इस ग्रंथ की रचना का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। परंपरागत रूप से इसे 5000 ईसा पूर्व से भी पहले का माना जाता है, लेकिन अनुमान है कि 15वीं-16वीं शताब्दी में इसकी वर्तमान स्वरूप में रचना हुई होगी।

ब्रह्म संहिता में वर्णित लोकों और ग्रहों का वैज्ञानिक आधार है?

ग्रंथ में वर्णित लोकों और ग्रहों को सीधे वैज्ञानिक तथ्यों से न जोड़कर, उन्हें ब्रह्मांडीय और दार्शनिक प्रतीकों के रूप में देखना उचित है।

ब्रह्म संहिता में कौन से भगवान विष्णु के रूपों का वर्णन है?

विष्णु के चार मुख्य रूपों – वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न का विस्तृत वर्णन है। साथ ही, उनके अवतारों और दिव्य लीलाओं का भी वर्णन मिलता है।

ब्रह्म संहिता में बताए गए भक्ति मार्ग कौन-कौन से हैं?

इसमें ज्ञान योग, कर्म योग, राजयोग और भक्ति योग के विभिन्न मार्गों का वर्णन है। साथ ही, शुद्ध भक्ति, प्रेममय भक्ति और सखा भाव से भक्ति करने की महिमा बताई गई है।

ब्रह्म संहिता का अध्ययन करने के लिए क्या योग्यताएं आवश्यक हैं?

यह ग्रंथ सभी के लिए खुला है। गहरी समझ के लिए भारतीय दर्शनशास्त्र और धर्मग्रंथों का कुछ ज्ञान लाभदायक हो सकता है, लेकिन जिज्ञासा और खुले दिमाग से कोई भी इसका अध्ययन कर सकता है।


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