श्री शनिदेव की आरती के बारे में कुछ बातें
आरती का अर्थ: आरती एक हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें दीपक जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। शनिदेव की आरती शनिदेव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है।
आरती का महत्व: शनिदेव (Shani Dev) को न्याय का देवता माना जाता है। वे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। शनिदेव की आरती करने से व्यक्ति के कर्मों का शुभ फल प्राप्त होता है। शनिदेव की आरती से व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य अशुभ प्रभावों से भी बचा जा सकता है।
आरती का समय: शनिदेव की आरती शनिवार के दिन सूर्यास्त के बाद की जाती है।
आरती की सामग्री: शनिदेव की आरती के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- दीपक
- तेल
- बत्ती
- कपूर
- फूल
- फल
- मिठाई
- जल
आरती का विधान:
- शनिदेव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- तेल और बत्ती दीपक में डालें।
- कपूर जलाएं।
- फूल, फल, मिठाई और जल अर्पित करें।
- आरती का मंत्र गाएं।
- आरती के बाद आरती की सामग्री को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
श्री शनिदेव की आरती | Aarti Shani Dev ki
…शनि भगवान की आरती…
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ 1
…जय जय श्री शनि देव…
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ 2
…जय जय श्री शनि देव…
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ 3
…जय जय श्री शनि देव…
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ 4
…जय जय श्री शनि देव…
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।। 5
श्री शनिदेव कथा
शनिदेव से जुड़ी कई मान्यताएँ और कथाएँ हैं, जो उनके महत्व को और भी अधिक उजागर करती हैं। आइए, उनमें से कुछ लोकप्रिय कथानों पर एक नज़र डालें:
1. शनिदेव का जन्म:
शनिदेव सूर्य देव और छाया के पुत्र हैं। एक कथा के अनुसार, सूर्य देव की पत्नी संज्ञा उनकी तेजस्विता को सहन नहीं कर पाती थीं, इसलिए उन्होंने छाया का रूप धारण किया। छाया से शनिदेव का जन्म हुआ। शनिदेव का जन्म होते ही चारों ओर का वातावरण अंधकार से भर गया। इस कारण उन्हें अशुभ माना गया, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें कर्मों का फल देने वाला देवता बनाया।
2. शनिदेव और हनुमान:
हनुमान जी को शनिदेव की दशा का सामना करना पड़ा था। एक कथा के अनुसार, हनुमान जी सूर्य को निगलने के लिए जा रहे थे, तब शनिदेव ने उन्हें रोका। हनुमान जी शनिदेव से क्रोधित हो गए और उनकी छाया को पकड़ लिया। इससे शनिदेव को बहुत पीड़ा हुई। बाद में हनुमान जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शनिदेव से क्षमा मांगी। शनिदेव ने उन्हें क्षमा कर दिया और उनके कष्ट दूर कर दिए।
3. शनिदेव की ढैय्या:
शनिदेव साढ़े सात साल तक किसी व्यक्ति पर अपनी दशा बनाए रखते हैं, जिसे शनि की ढैय्या कहा जाता है। इस दौरान व्यक्ति को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। माना जाता है कि इस समय शनिदेव की कृपा से ही व्यक्ति इन कठिनाइयों को पार कर सकता है।
4. शनिदेव की पूजा:
शनिदेव की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और कर्मों का शुभ फल मिलता है। शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। इस दिन लोग शनिदेव की मूर्ति का अभिषेक करते हैं, तेल चढ़ाते हैं, और उनकी आरती करते हैं।
5. शनिदेव के मंदिर:
भारत में कई प्रसिद्ध शनिदेव मंदिर हैं, जिनमें शनि शिंगणापुर, उज्जैन का शनि मंदिर, और कोल्हापुर का शनि मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों में हर शनिवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
श्री शनिदेव की कृपा कैसे पाए?
शनिदेव की कृपा पाने के लिए भव्य पूजा-पाठ या महंगे चढ़ावे जरूरी नहीं हैं। आप अपने दैनिक जीवन में कुछ सरल उपायों को अपनाकर भी उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आइए, उन उपायों पर एक नज़र डालें:
1. सत्यनिष्ठा से रहें: शनिदेव सत्य के देवता हैं। इसलिए हमेशा सत्य बोलें और सत्य के मार्ग पर चलें। किसी को धोखा न दें और अन्याय न करें। सत्यनिष्ठा ही शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका है।
2. कर्म का फल स्वीकार करें: प्रत्येक कर्म का फल भोगना पड़ता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। इसलिए, बिना शिकायत किए अपने कर्मों का फल स्वीकार करें। गलत कर्मों के लिए पछतावा करें और अच्छे कर्म करने का संकल्प लें।
3. असहायों की मदद करें: गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों की मदद करें। दूसरों के दुख-दर्द को अपना मानकर उनकी सहायता करें। दान-दक्षिणा करना भी शनिदेव को प्रसन्न करता है।
4. क्रोध और ईर्ष्या का त्याग करें: क्रोध और ईर्ष्या हमारे मन को अशुद्ध करते हैं। इन भावों को अपने ऊपर हावी न होने दें। शांत चित्त रहें और दूसरों की सफलता से खुश हों।
5. माता-पिता का सम्मान करें: माता-पिता की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। उनकी आज्ञा का पालन करें और उनका सम्मान करें। माता-पिता का आशीर्वाद शनिदेव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी उपाय है।
6. नियमित रूप से शनिदेव का ध्यान करें: कुछ समय के लिए शांत बैठें और शनिदेव का ध्यान करें। उनकी छवि का ध्यान करें या उनका मंत्र जपें। इससे मन को शांति मिलेगी और शनिदेव की कृपा प्राप्त होगी।
7. शनि शिंगणापुर की यात्रा करें: यदि संभव हो, तो महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर की यात्रा करें। यह शनिदेव का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां उन्हें प्रसन्न करने के लिए कोई दक्षिणा या चढ़ावा नहीं चढ़ाया जाता है। यहां सिर्फ सत्यनिष्ठा और शुद्ध मन से की गई प्रार्थना ही मानी जाती है।
8. शनि ग्रह को मजबूत करें: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, रत्न और ज्योतिषीय उपायों से भी शनि ग्रह को मजबूत किया जा सकता है। लेकिन, यह किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श लेकर ही करना चाहिए।
इन सरल उपायों को अपनाकर आप शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि ला सकते हैं। याद रखें, सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म ही शनिदेव को प्रसन्न करते हैं।
निष्कर्ष
श्री शनिदेव की कथाएँ और मान्यताएँ हमें कर्मफल, न्याय, और भक्ति का महत्व सिखाती हैं। शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए न केवल पूजा-पाठ जरूरी है, बल्कि अच्छे कर्म भी जरूरी हैं। हमें सदा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए और सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखना चाहिए। तभी हम जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
FAQs
शनिदेव की आरती क्यों की जाती है?
शनिदेव को कर्मों के अनुसार फल देने वाले न्याय के देवता के रूप में जाना जाता है। उनकी आरती करने से व्यक्ति को उनके आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, शुभ कर्मों का फल मिलता है, और शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या जैसे अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है।
शनिदेव की आरती का समय क्या है?
सामान्यतः शनिदेव की आरती शनिवार के दिन सूर्यास्त के बाद की जाती है। लेकिन आप अपनी सुविधा अनुसार भी कर सकते हैं।
शनिदेव की आरती के लिए क्या सामग्री चाहिए?
आरती के लिए दीपक, तेल, बत्ती, कपूर, फूल, फल, मिठाई और जल की आवश्यकता होती है।
शनिदेव की आरती कैसे करें?
शनिदेव की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और उसमें तेल व बत्ती डालें।
कपूर जलाएं और फूल, फल, मिठाई और जल अर्पित करें।
शनिदेव की आरती का मंत्र श्रद्धापूर्वक गाएं।
आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
शनिदेव की आरती के क्या लाभ हैं?
नियमित आरती करने से शनिदेव की कृपा मिलती है, कर्मों का शुभ फल प्राप्त होता है, अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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